जय जय श्री राधे----
एक लता थी वो निरीह सी
चली अपने माधव से मिलने
हवा ने बदली जब अपनी चाल
बदल गयी तब तो रास्ते की ढाल
वो खो गयी आंधीयों की गर्द धूल में
जलाया था जो दीप माधव मिलन का
बुझा नहीं वो फिर भी गहरी आंधीयों मे
पड़ी एक क्षण उसपे किरण माधव के नूर की
कुछ तुड़ी और मुड़ी सी उठ चली फिर बेबसी में
ठोकरे खाती वो कहते रटते माधव मधुसूदन मुरारी
लिए पक्की लगन वो पहुंची माधव की पावन शरण में
बन गयी दिव्यरुपा रहा न भेद कुछ माधव और प्रेम बेल में
रखे मान सदा ही माधव अपने निराले प्रेमी और विरह जनों का
हो शंका तो आजमा ले कोई देना पड़ता है सर्वस्व माधव परम धन को
जय जय श्री राधे ----राधे कृष्णा -श्रीओम...
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